- पार्किंसंस पर जागरूकता बढ़ाने के लिए इंटरएक्टिव सत्र का आयोजन
गुरुग्राम। आर्टेमिस हॉस्पिटल ने पार्किंसंस और मूवमेंट संबंधित अन्य बीमारियों के बारे में कायम गलत धारणाओं को तोड़ते हुए, आज एक अभिनव कार्यक्रम का आयोजन किया। इस वर्ष की थीम ’पार्किंसंस इज़’ है, जिसका उद्देश्य पार्किंसंस रोग को एक गंभीर स्थिति के रूप में समझना है, जिसे पोस्ट कोविड युग में हर व्यक्ति द्वारा मानसिक स्वास्थ्य देखभाल के लिए जबरदस्त प्रतिक्रिया मिली है।
इस अवसर पर आर्टेमिस हॉस्पिटल में न्यूरोसर्जरी और सीएनएस रेडियोसर्जरी विभाग के निदेशक, साइबरनाइफ सेंटर के सह-निदेशक डॉ आदित्य गुप्ता और न्यूरोलॉजी विभाग के निदेशक, पार्किंसन स्पेशलिस्ट डॉ. सुमित सिंह उपस्थित थे, जिन्होंने इस तथ्य पर जोर दिया कि समय पर उपचार पार्किंसंस रोग के लक्षणों को नियंत्रित करने में मदद करता है और व्यक्ति को जीवन की बेहतर गुणवत्ता का नेतृत्व करने में सक्षम बनाता है।इस विशेष कार्यक्रम को मिथकों पर जानकारी प्रदान करने के मुख्य उद्देश्य के साथ तैयार किया गया था कि झटके और शरीर की अनैच्छिक गतिविधियों के अन्य लक्षण केवल उम्र बढ़ने का हिस्सा नहीं हैं। इस कार्यक्रम का उद्देष्य जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए उपलब्ध प्रबंधन विकल्पों के बारे में जागरूकता बढ़ाना भी था।
डॉ. सुमित सिंह ने कहा, ‘‘पार्किंसंस रोग (पीडी) जैसे मूवमेंट डिसआर्डर का समय पर इलाज कराने से न केवल नैदानिक परिणामों में सुधार होता है, बल्कि इससे रोगी के जीवन की गुणवत्ता में भी सुधार होता है। इस रोग के लिए उपलब्ध कई प्रबंधन विकल्पों के साथ-साथ, समय पर दवा लेने से लक्षणों में सुधार करने में काफी मदद मिलती है। कुछ मामलों में जब दवाओं का प्रभाव अक्सर कम हो जाता है, तो डीप ब्रेन स्टिमुलेशन सर्जरी जैसे अन्य विकल्प उपचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हालांकि सर्जरी इसका अंतिम उपाय है, लेकिन ऐसे कई प्राथमिक देखभाल चिकित्सक को जो दवाओं के माध्यम से झटके को नियंत्रित करते हैं, ऐसी सर्जरी करने में उत्कृष्टता हासिल नहीं होती है। इसलिए न सिर्फ रोग का पता लगाने के लिए, बल्कि ऐसे लक्षणों के अन्य कारणों का भी पता लगाने के लिए न्यूरोलॉजिस्ट के पास जाना महत्वपूर्ण है।’’
पार्किंसंस रोग (पीडी) का निदान आम तौर पर लक्षणों के आधार पर ही किया जाता है और एमआरआई, मस्तिष्क का सीटी स्कैन और पीईटी स्कैन जैसे अन्य इमेजिंग परीक्षण का उपयोग केवल अन्य बीमारियों का पता लगाने के लिए किया जा सकता है, लेकिन पार्किंसंस रोग के निदान के लिए ये विशेष रूप से उपयोगी नहीं हैं।
डॉ. आदित्य गुप्ता ने कहा, ‘‘डीबीएस सर्जरी एक अत्यधिक सुरक्षित और कम कष्ट वाली सर्जिकल प्रक्रिया है जो पिछले एक दशक में उन्नत पार्किंसंस रोग के लिए एक अत्यधिक प्रभावी चिकित्सा के रूप में स्थापित हो चुकी है। ऐसी प्रक्रियाओं ने हजारों रोगियों के जीवन को बदल दिया है, जिससे उन्हें अपनी दवाओं को कम करने में मदद मिली है। हृदय पेसमेकर की तरह ही, डीबीएस सर्जरी में मस्तिष्क में प्रभावित क्षेत्र में एक इलेक्ट्रोड को स्थापित कर दिया जाता है और इसे पेसमेकर जैसे इम्प्लांट (छाती की त्वचा के नीचे) से जोड़ दिया जाता है। डिवाइस को मस्तिष्क के विशिष्ट क्षेत्रों में विद्युत संकेतों को डिलीवर करने के लिए प्रोग्राम किया जाता है, जिससे असामान्य संकेतों को नियंत्रित किया जाता है, जो झटके पैदा कर रहे थे। डीबीएस की खासियत यह है स्टिमुलेशन की मदद से मरीज को राहत प्रदान की जाती है।’’ पार्किंसंस क्रोनिक न्यूरोलॉजिकल डिजनरेटिव डिसऑर्डर है, इसलिए यह तेजी से बढ़ता है और उन तंत्रिका कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाता है जो मस्तिष्क के उस हिस्से में डोपामाइन का उत्पादन करती हैं जो मूवमेंट को नियंत्रित करते हैं। हालांकि यह बहुत दुर्लभ है, लेकिन यह आम तौर पर 60 वर्ष से अधिक उम्र के 100 में से एक व्यक्ति को प्रभावित करता है।