यूक्रेन पर हमले के एक सप्ताह बाद भी रूस वांछित नतीजा हासिल नहीं कर पाया है। जैसे-जैसे समय बीत रहा है, अधिक विनाश एवं विध्वंस की संभावनाएं बढ़ती जा रही है। विश्व युद्ध का संकट भी मंडराने लगा है। रूस यूक्रेन से बात करने को तो तैयार है, लेकिन अपनी शर्ताे पर। उसके ऐसे रवैये के चलते यदि दोबारा बात होती भी है तो उससे कोई ठोस परिणाम निकलने की आशा कम ही है, यह स्थिति दुनिया को अशांति की ओर अग्रसर करने वाली है।

अमेरिका और उसके सहयोगी देशों की नाकामी ने अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक क्षेत्र में एक रिक्तता पैदा करते हुए संकट को गहराया है। भारत को इस रिक्तता की पूर्ति के लिए सक्रिय होना चाहिए। भले ही भारत के रिश्ते रूस के साथ दोस्ताना के रहे हैं, लेकिन इसकी अनदेखी भी नहीं की जा सकती कि यूक्रेन पर रूस के भीषण हमलों में वहां लोगों की जान जा रही है-न केवल निर्दोष-निहत्थे यूक्रेनियों की, बल्कि अन्य देशों के नागरिकों की भी। गत दिवस एक भारतीय छात्र की भी जान गई। अभी भी वहां भारत के साथ अन्य देशों के तमाम छात्र फंसे हुए हैं।

यूक्रेन के साथ कोई अनहोनी होती है तो इसके लिए केवल रूस ही जिम्मेदार होगा। रूस एवं यूक्रेन के बीच इस तरह युद्धरत बने रहना खुद में एक असाधारण और अति-संवेदनशील मामला है, जो समूची दुनिया को विनाश एवं विध्वंस की ओर धकेलने जैसा है। ऐसे युद्ध का होना विजेता एवं विजित दोनों ही राष्ट्रों को सदियों तक पीछे धकेल देगा, इससे भौतिक हानि के अतिरिक्त मानवता के अपाहिज और विकलांग होने का भी बड़ा कारण बनेगा। विश्व के एक बड़े हिस्से में रूस पहले ही एक खलनायक जैसा उभर आया है। बेलारूस, वेनेजुएला, सीरिया, ईरान, उत्तर कोरिया जैसे चंद देशों को छोड़कर अन्य कोई देश सीधे तौर पर उसके साथ नहीं खड़ा। रूस को न केवल अपनी वैश्विक छवि की चिंता करनी चाहिए, बल्कि यूक्रेन में फंसे विदेशी नागरिकों के साथ आम यूक्रेनियों की जिंदगी की भी। उसे विश्वशांति एवं मानवता की रक्षा का ध्यान रखते हुए युद्ध विराम के लिये अग्रसर होना चाहिए।

यह सही है कि अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने रूस के सुरक्षा हितों की उपेक्षा करते हुए यूक्रेन को सैन्य संगठन नाटो का हिस्सा बनाने की अनावश्यक पहल की, यही वह वजह है जिसके कारण युद्ध उग्रत्तर होता गया लेकिन इसका यह मतलब तो नहीं कि रूसी राष्ट्रपति यूक्रेन के आम लोगों के साथ वहां रह रहे विदेशी नागरिकों की जान की परवाह न करें। फिलहाल वह ऐसा ही करते दिख रहे हैं और इसीलिए पश्चिम के साथ-साथ दुनिया के अन्य हिस्सों में भी निंदा का पात्र बने हुए हैं। खुद भारत ने सुरक्षा परिषद में यह साफ किया है कि यूक्रेन में हमला करके रूस ने उसकी संप्रभुता का उल्लंघन करने के साथ जिस तरह अंतरराष्ट्रीय नियमों की अवहेलना की, उसे उचित नहीं ठहराया जा सकता। यूक्रेन और रूस के बीच जारी युद्ध में भारतीय पक्ष का रुख न केवल संवेदनशील, बल्कि संतुलित भी है। भारत ने हमले की निंदा खुले शब्दों में भले न की हो, लेकिन उसने रूसी हमले का पक्ष भी नहीं लिया है और यूक्रेन की स्वतंत्रता और संप्रभुता के पक्ष में डटा हुआ है। कुल मिलाकर, भारत शांति का पक्षधर है और रूस एवं यूक्रेन युद्ध के सन्दर्भ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि एक साहसी लेकिन अहिंसक नेता के रूप में उभरी है।

यूक्रेन और रूस में शांति का उजाला करने, अभय का वातावरण, शुभ की कामना और मंगल का फैलाव करने के लिये भारत को शांति प्रयास करने चाहिए। मनुष्य के भयभीत मन को युद्ध की विभीषिका से मुक्ति देनी चाहिए। इन दोनों देशों को अभय बनकर विश्व को निर्भय बनाना चाहिए। निश्चय ही यह किसी एक देश या दूसरे देश की जीत नहीं बल्कि समूची मानव-जाति की जीत होगी। यह समय की नजाकत को देखते हुए जरूरी है और इस जरूरत को महसूस करते हुए दोनों देशांे को अपनी-अपनी सेनाएं हटाने के लिए तैयार हो जाना चाहिए। यह रूस का अहंकार एवं अंधापन ही है कि वह पहले दिन से ही ऐसे व्यवहार कर रहा है जैसे यूक्रेन उसके समक्ष कुछ भी नहीं, सचाई भी यही है कि यूक्रेन रूस के सामने नगण्य है। यथार्थ यह है कि अंधकार प्रकाश की ओर चलता है, पर अंधापन मृत्यु-विनाश की ओर। लेकिन रूस ने अपनी शक्ति एवं सामर्थ्य का अहसास एक गलत समय पर गलत उद्देश्य के लिये कराया है।

युद्ध जब शुरू हुआ था, तब भारत पर विशेष दबाव था कि वह युद्ध रोकने की पहल करे और भारत ने अपने दायरे में रहते हुए पुरजोर कोशिश की भी है। यहां तक कि भारत के रुख से अमेरिका को भी कोई शिकायत नहीं है। रूस भारत का आजमाया हुआ मित्र देश है, इस हिसाब से भी भारत का संतुलित रुख वास्तव में युद्ध का विरोध ही है। भारत में पदस्थ रूसी राजदूत ने भी संयुक्त राष्ट्र में भारत द्वारा अपनाए गए निष्पक्ष और संतुलित रुख के लिए आभार जताया है। भारत ने न केवल संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करने का आह्वान किया है, बल्कि हिंसा और शत्रुता को तत्काल समाप्त करने की भी मांग की है। भारत इस समस्या का समाधान कूटनीति के रास्ते से देखना चाहता है। वह युद्ध का अंधेरा नहीं, शांति का उजाला चाहता है। पिछले दिनों कुछ व्यग्रता का परिचय देते हुए पोलैंड जैसे देश भारत या भारतीयों के खिलाफ दिखने लगे थे, लेकिन अब उन्हें भी भारत की कोशिशों का महत्व समझ में आने लगा है। भारत की कोशिशें उन देशों से कहीं बेहतर हैं, जो यूक्रेन को हथियार देकर आग में घी डालने का काम कर रहे हैं। लेकिन उन्हें यह सोच लेना चाहिए, जब रूस में तबाही शुरू होगी, तब इस युद्ध का क्या रुख होगा? यह तबाही रूस नहीं, बल्कि समूची दुनिया की तबाही होगी, क्योंकि रूस परमाणु विस्फोट करने को विवश होगा, जो दुनिया की बड़ी चिन्ता का सबब है। बड़े शक्तिसम्पन्न राष्ट्रों को इस युद्ध को विराम देने के प्रयास करने चाहिए। जबकि वे हिंसक एवं घातक मारक अस़्त्र-शस़्त्र देकर युद्ध को और तीव्र कर रहे हैं, जबकि युद्ध क्षेत्र में आम लोगों तक हर जरूरी मानवीय मदद पहुंचाने की जरूरत है, भारत ने मानवीय आधार पर इसी तरह की राहत सामग्री यूक्रेन भेजी है। जो विमान भारतीयों को लाने के लिए उधर जा रहे हैं, उनमें राहत सामग्री के पैकेट भी भेजे जा रहे हैं। भारत उन सबके साथ है, जो मदद की बाट जोह रहे हैं। किसी भी देश में यह भ्रम पैदा नहीं होना चाहिए कि भारत हाथ पर हाथ धरे बैठा है। भारत ने उचित ही संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को यह भी बता दिया है कि वह सभी संबंधित पक्षों के संपर्क में है और उनसे बातचीत की मेज पर लौटने का आग्रह कर रहा है। निस्संदेह, भारत को मानवता के पक्ष के साथ-साथ अपना हित देखते हुए शांति और राहत के प्रयासों में जुटे रहना चाहिए।

रूस का यह अहंकार ही है कि वह यूक्रेन को कमजोर होने की वजह से दबा रहा है। बुरा आदमी और बुरा हो जाता है जब वह साधु बनने का स्वांग रचता है। रूस ऐसा ही महसूस कराता रहा है। यह उसका अहंकार ही है कि युद्ध न करने की बात करते हुए एकाएक युद्ध की दिशा में बढ़ा है। इस मोर्चे पर होने वाला कोई भी नुकसान यूक्रेन और रूस की अर्थव्यवस्थाओं के लिए तो समस्या पैदा करेगा ही, दुनिया को भी अस्त-व्यस्त कर देगा। अभी समूची दुनिया कोरोना महामारी के संकट से पूरी तरह उभरी भी नहीं है, यह नया संकट घने अंधेरे देने वाला है। सबसे बुनियादी वजह यह है कि एक से एक विनाशकारी हथियारों की मौजूदगी के कारण युद्ध अधिक घातक होता जा रहा है। यूक्रेन और रूस दोनों जिम्मेदार राष्ट्र होने के नाते दोनों के ऊपर क्षेत्र में अमन-चैन बनाए रखने की जवाबदेही भी है। जब तक रूस के अहंकार का विसर्जन नहीं होता तब तक युद्ध की संभावनाएं मैदानों में, समुद्रों में, आकाश में तैरती रहेगी, इसलिये आवश्यकता इस बात की भी है कि जंग अब विश्व में नहीं, हथियारों में लगे। मंगल कामना है कि अब मनुष्य यंत्र के बल पर नहीं, भावना, विकास और प्रेम के बल पर जीए और जीते।

By VASHISHTHA VANI

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