राजस्थान पुलिस कॉन्स्टेबल भर्ती परीक्षा का पेपर फिर लीक हो गया है। सरकार ने रीट परीक्षा में हुए पेपर आउट के मामले में कानून बनाया था। उसे लेकर कई प्रकार के दावे किए गये थे।

लेकिन 15 मई 2022 को हुई राजस्थान पुलिस कॉन्स्टेबल भर्ती परीक्षा में फिर पेपर आउट हो जाने पर परिक्षार्थी का ही नहीं आम आदमी का ही इन सरकारी भर्ती परीक्षाओं से विश्वास उठ गया है। हालांकि मामले में एसओजी ने फरार मुख्य आरोपी मोहन और उसकी पत्नी प्रिया को गिरफ्तार किया है। गिरफ्तार 13 आरोपियों में सीआईडी सीबी का पुलिस निरीक्षक भी शामिल है। आरोपियों से एसओजी टीम पूछताछ कर रही है।
इस सम्बंध में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का कहना है कि पेपर लीक की घटनाओं के पीछे सबसे बड़ा बेरोजगारी का कारण है। उनके अनुसार जिस तरह से पेपर लीक की घटनाएं पूरे देश में हो रही है, उसका कारण बेरोजगारी है। उनके अनुसार यह समस्या राजस्थान की नहीं है पूरे देश की है। गहलोत के अनुसार जो क्राइम हो रहा है, रेप हो रहे है, काफी हद तक उसके पीछे भी कारण होता है कि आदमी जब फ्रस्ट्रेशन में होता है तो क्राइम करता है, नशा करता है, क्या क्या नहीं करता? रोजगार नहीं मिलेगा तो क्राइम बढेगा और पेपर लीक जैसी घटनाएं गैंग बनाकर होंगी, जो कि हो रही है। हर राज्य में होने लगी हैं। राजस्थान में कानून पास किया है। हम सुनिश्चित करेंगे कि युवाओं को रोजगार मिले। कैसे मिले यह जिम्मेदारी सरकार की नहीं है। सरकार ने नौकरियां निकाली है उसका लाभ बेरोजगारों को लेना चाहिए।

मुख्यमंत्री गहलोत ने जो ब्यान दिया है वह किस की तरफदारी कर रहा है। राजस्थान में 35 लाख के लगभग युवा बेरोजगारी की कतार में है। वही सरकार द्वारा निकाली गई इन प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए सालों घर से अलग रह कर, लाखों रूपयों का खर्चा कर दिन रात लगा हुआ है। लेकिन जब पेपर आउट हो जाता है तो, यह कहा जाता है कि यह सब बेरोजगारी के कारण हैं, हो सकता है। कुछ लोग जो सरकार और समाज विरोधी काम में लगे हुए है, जो संगठित होकर बेरोजगारों से अनाधिकृत रूप से लाखों करोड़ों रूपये लेकर पेपर आउट करते है। वे नीति और नियमों के अनुसार फार्म भरकर परीक्षा देने वालों से भी बड़े बेरोजगार है। यदि ऐसा है तो, सरकार को किसी कानून की दुहाई नहीं देनी चाहिए। और ना ही यह कहना चाहिए कि कानून अपना काम करेगा। कब करेगा, जब सभी लोग अनैतिक कार्य करने लग जायेंगे। क्यों कि वे बेरोजगार जो है।
सरकार ने परीक्षा विरोधी गतिविधि को रोकने के लिए कानून बनाया है। लेकिन उस कानून को ही पैरों तले रोंद कर लाखों युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ किया जा रहा है। सरकार के जिम्मेदार लोग इतना भर कहते है कि पेपर आउट हो गया परीक्षा दुबारा होगी। यह सुन कर या पढकर उन परिक्षार्थियों और उनके परिजनों पर क्या बीतती होगी! खैर माननीय मुख्यमंत्री जी का ब्यान उनकी पीड़ा को कम नहीं करता उस पीड़ा को ओर बढाता है। क्या बेराजगारी के कारण अपराध और क्राइम बढ रहे है, यदि ऐसा है तो फिर सरकार और उसके तामझाम के होने का औचित्य किसके लिए है।

सांसद डॉ0 किरोड़ी लाल मीणा ने आरोप लगाया है कि पेपर लीक की सूत्रघार वहीं कंपनी है जिसके पास परीक्षा आयोजित कराने की जिम्मेदारी है। श्री मीणा के अनुसार टीसीएस कपंनी के दागदार इतिहास के बावजूद सरकार ने इसे परीक्षा का जिम्मा सौप कर कई सवाल खडे कर दिये है। कपंनी के राजस्थान हेड भुवनेश भार्गव कोटा के रहने वाले है। सांसद मीणा ने आरोप लगाया है कि राज्य के एक कैबिनेट मंत्री का उन्हें वरद हस्त है। डॉ0 मीणा के अनुसार जयपुर के झोटवाड़ा के दिवाकर उच्च माध्यमिक विधालय में महज ढाई सौ परीक्षार्थियों के बैठने की क्षमता है, लेकिन यहां पर मिली भगत से 300 से अधिक परीक्षार्थियों को बैठाया गया जबकि यह परीक्षा केन्द्र कर्मचारी चयन बोर्ड और आरपीएससी की परीक्षाओं के लिए पहले से ही ब्लैक लिस्टेड है।
डॉ0 मीणा ने यह आरोप भी लगाया है कि कंपनी ने महज 15 हजार रूपये में परीक्षा से 15 दिन पहले संविदा पर कई कर्मचारियों को हायर कर लिया और आनन फानन में उन्हीं को ऑब्जर्वर और अन्य पदों पर लगाते हुए परीक्षा करवा दी। उनके अनुसार टीसीएस कंपनी ने ही परीक्षा से संबंधित सभी काम किये, सरकार का कोई किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं था। कंपनी ने ही परीक्षा केंद्रों का चुनाव किया और परीक्षा करवाई। ऐसे में पूरी परीक्षा को प्राइवेट हाथों में दे दिया गया। जो सरकारी निर्णय पर भी सवाल खड़े करता है। डॉ0 मीणा के अनुसार इसी टीसीएस कंपनी ने दिल्ली कॉन्स्टेबल भर्ती परीक्षा 2020 का आयोजन कराया था। इसमें कोटा के एक परीक्षा केन्द्र हरि ओम कोठारी कॉलेज सेंटर से एक साथ 226 अभ्यर्थियों का चयन हो गया था। धांधली की जानकारी होने पर इनका चयन निरस्त कर दिया गया और अब सीबीआई जांच जारी है।
डॉ0 मीणा ने जो आरोप लगाए है उनकी भी सरकार को निष्पक्ष जांच करानी चाहिए। क्यों कि यह सारा मामला 35 लाख से भी अधिक बेरोजगारों एवं करोड़ों अभिभावको से जुड़ा है। एक अल्प आय वर्ग का पिता अपने बेटे के लिए सरकारी नौकरी का सपना देखता है। उसे जैसे-तैसे परीक्षा की तैयारी के लिए शहर भेजता है। कुछ साल खर्च उठाया। बेटे ने रीट परीक्षा दी, लेकिन पेपर आउट हो गया। बेटे का सपना पूरा होने से पहले पिता चल बसे। अब परिवार की जिम्मेदारी उस बेटे पर थी जो शहर में रहकर तैयारी कर रहा था। ऐसे ही एक किसान ने अपने बेटे को पढ़ाने के लिए रिश्तेदारों से ब्याज पर पैसे लिए। लेकिन पेपर धांधली की खबर ने उसे अंदर तक तोड़कर कर रख दिया। उसे तैयारी के लिए और चार महीने शहर में रुकना होगा।
एक तरफ शहर में रहने का खर्च देते-देते आर्थिक रूप से टूटते परिवार की परेशानी, तो दूसरी ओर उम्र की सीमा पार न हो जाने की चिंता। ये स्टूडेंट्स आर्थिक ही नहीं, मानसिक और सामाजिक तौर पर भी टूट जाते हैं। ये बेरोजगारी की वो मार है जो असल में गरीब परिवारों पर अधिक पड़ रही है। रीट, एसआई से लेकर हर बड़ी भर्ती में धांधली की खबर युवाओं के सपनों को ऐसे ही तोड़ रही है। उन परिवारों को झकझोर रही है, जो एक सरकारी नौकरी की उम्मीद में कर्ज लेकर लाखों रुपए खर्च कर रहे हैं। और परिणाम में हतासा अपनों की बेरूखी प्राप्त कर रहे है। सरकार में बैठे जिम्मेदार लोगों को इन बेरोजगारों की और उनके परिजनों की पीड़ा को समझ कर सिस्टम को चुस्त दुरूस्त करना चाहिए। अन्यथा पहले आओं ,अधिक लाओं और अपनी क्षमता से अधिक पाओं के लिए सारे दरवाजे खोल देने चाहिए। कम से कम कोई गरीब का बेटा या पिता उम्मीद के भरोषे कर्ज में तो नहीं दबेगा।
राजस्थान में देश के अन्य राज्यों के मुकाबले सबसे अधिक बेरोजगारी है। सीएमआईई (ब्मदजतम वित डवदपजवतपदह प्दकपंद म्बवदवउल) की जनवरी से लेकर अप्रैल 2022 की रिपोर्ट के अनुसार राजस्थान में 27 फीसदी बेरोजगारी की दर रही है। खास बात यह है कि प्रदेश में स्नातक और इससे अधिक पढ़े हुए युवाओं में 54 प्रतिशत तक बेरोजगारी है। कॉन्स्टेबल भर्ती परीक्षा में बोर्ड ने करोड़ों कमाए है। परीक्षार्थियों को रोड़वेज की यात्रा फ्री कर सरकार ने भी अपनी पीठ थपथपा ली, लेकिन पर्चा लीक होने पर फिर भी ठगे गए 35 लाख बेरोजगार।