रूस और यूक्रेन के बीच शुरू हुआ युद्ध अब भारत के लिए बड़ी चिंता का विषय बनता जा रहा है। 24 एसबीआई की शोध रिपोर्ट की मानें तो संभावना है कि अगर दोनों देशों की बीच जारी ये जंग लंबी खिंची तो कच्चे तेल के भाव और ऊपर जाएगा, जिसके बाद भारत को करीब एक लाख करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान उठाना पड़ सकता है। ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट में कहा गया है, ‘2014 के बाद पहली बार तेल का दाम 100 डॉलर प्रति बैरल तक उछला है, जिसने वैश्विक अर्थव्यवस्था को बड़ा झटका दिया है । अमेरिकी फेडरल रिजर्व और उसके साथी केंद्रीय बैंकों के लिए यह चिंताजनक बात है। क्योंकि वे महामारी से उबरे बिना अब एक और संकट के सामने खड़े हैं। कोरोना की वजह से महंगाई पहले से ही एक बड़ा सिरदर्द बनी हुई है। भारत का बेंचमार्क स्टॉक मार्केट इंडेक्स, बीएसई एस एंड पी बीती 24 फरवरी को 4.7 फीसदी गिर गया है।

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लेखक: राजेश माहेश्वरी

भारत के पांच राज्यों में हो रहे चुनावों के बीच तेल की कमीतों को लेकर पहले से ही हल्ला मचा हुआ है। अब रूस-यूक्रेन संकट ने इस मुश्किल को और बढ़ा दिया है। पेट्रोल-डीजल की कीमतों को नवंबर 2021 से स्थिर रखा गया है, जब भारत के कच्चे तेल की कीमत 80 डॉलर प्रति बैरल थी। इस साल के आर्थिक सर्वेक्षण में अनुमान लगाया गया है कि अगले वित्त वर्ष में कच्चे तेल की कीमतें 70-75 डॉलर प्रति बैरल के दायरे में बनी रहेंगी। अगर कच्चे तेल की कीमतें मौजूदा स्तरों पर भी बनी रहती हैं, तो ईंधन की कीमतों में 10 रुपये प्रति लीटर से अधिक की वृद्धि करनी होगी, जब तक कि सरकार यूनियन एक्साइज ड्यूटी को कम करने या पेट्रोलियम सब्सिडी बढ़ाने के लिए तैयार नहीं होती है। इन दोनों फैसलों से बड़े पैमाने पर बजट में हुई गणना गड़बड़ा सकती है। कीमतों में भारी वृद्धि से महंगाई बढ़ेगी, आर्थिक संकट बढ़ेगा और राजनीतिक असंतोष बढ़ने की भी संभावना है। एक अकेली रोशनी की किरण या कहें उम्मीद, भारत का विदेशी मुद्रा भंडार है, जो लगभग 630 बिलियन डॉलर है।

पेट्रोल के दाम बढ़ने का असर व्यक्तिगत तौर पर गाड़ी इस्तेमाल करने वालों पर ही पड़ेगा। वहीं डीजल के दाम ट्रांसपोर्टेशन को महंगा बनाएंगे। इससे हर उस चीज के दाम में इजाफा होना तय है, जिनके उत्पादन के कच्चे माल को और फिर अंतिम उत्पाद की डिलिवरी में ट्रांसपोर्टेशन का इस्तेमाल होता है। यानि तकरीबन हर तरफ इसका असर दिख सकता है।

भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की शोध रिपोर्ट में प्रमुख आर्थिक सलाहकारी सौम्यकांति घोष ने दावा किया है, युद्ध के लंबे खिंचने पर अगले वित्त वर्ष में सरकार के राजस्व में 95 हजार करोड़ से एक लाख करोड़ रुपये तक की कमी देखने को मिल सकती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि नवंबर 2021 से अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत आसमान छूती जा रही है। यहां आपको बता दें कि अगर कच्चे तेल की कीमत 100 से 110 डॉलर की सीमा में रहती है तो वैट के ढांचे के अनुसार, पेट्रोल-डीजल की कीमत मौजूदा दर से 9 से 14 रुपये प्रति लीटर अधिक होगी। सरकार उत्पाद शुल्क में कटौती करने के बाद कीमत बढ़ने से रोकती है, ऐसे में इस हिसाब से सरकार को हर महीने 8,000 करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान उठाना होगा।

जापान की रिसर्च कंपनी नोमुरा की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत बड़ा तेल आयातक है और यही कारण है कि युद्ध के लंबा खिंचने पर भारत के लिए मुश्किलें बढ़ेंगी। रिपोर्ट के अनुसार, तेल की कीमतों में प्रति 10 फीसदी की उछाल के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर में लगभग 0.20 फीसदी की गिरावट आएगी। इसके अलावा थोक महंगाई दर में 1.20 फीसदी, जबकि खुदरा महंगाई दर में 0.40 फीसदी की बढ़ोतरी हो सकती है। इसके अलावा घरेलू कोयले की आपूर्ति को लेकर भी सरकार पर दबाव बढ़ेगा।

भारत तेल से लेकर जरूरी इलेक्ट्रिक सामान और मशीनरी के साथ मोबाइल-लैपटॉप समेत अन्य गैजेट्स के लिए दूसरे देशों से आयात पर निर्भर है। अधिकतर मोबाइल और गैजेट का आयात चीन और अन्य पूर्वी एशिया के शहरों से होता और अधिकतर कारोबार डॉलर में होता है। युद्ध के हालातों में अगर रुपये में इसी तरह गिरावट जारी रही तो देश में आयात महंगा हो जाएगा। विदेशों से आयात होने के कारण इनकी कीमतों में इजाफा तय है, मतलब मोबाइल और अन्य गैजेट्स पर महंगाई बढ़ेगी और आपको ज्यादा खर्च करना होगा। भारत यूक्रेन को बड़े पैमाने पर दवा, बॉयलर मशीन, तिलहन, फल, कॉफी, चाय, मसाले समेत कई और वस्तुओं की सप्लाई करता है। अकेले यूपी के गाजियाबाद की करीब 80 से 100 ऐसी फैक्ट्री है, जिसका सीधा व्यापार यूक्रेन से होता है। युद्ध के कारण कुछ भी इंपोर्ट-एक्सपोर्ट नहीं हो पा रहा है।

रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण सिर्फ पेट्रो पदार्थ ही महंगे नहीं होंगे, बल्कि उस आपूर्ति के संकट भी गहरे हो सकते हैं, जिनका सीधा संबंध हमारे खान-पान और खेती से है। खाद्य तेल और कुछ खास उर्वरकों के लिए हम आयात के ही भरोसे हैं। भारत अपनी जरूरत का 80 फीसदी कच्चा तेल विदेशों से खरीदता है। मुख्यतौर पर बुनियादी संकट खाद्य तेल और उसकी लगातार आपूर्ति का है। भारत सूरजमुखी तेल की जरूरतों और खपत का करीब 98 फीसदी हिस्सा आयात करता है। उसका भी करीब 93 फीसदी आयात यूक्रेन और रूस से किया जाता है। भारत में करीब 230 लाख टन खाद्य तेल की जरूरत है, जबकि घरेलू उत्पादन करीब 90 लाख टन ही है। गेहूं और मक्के का संकट भारत के सामने नहीं है, लेकिन बुनियादी चिंता खाद्य तेल और उर्वरक, खाद के संकट को लेकर है। देश ने दिसंबर, 2021 तक 14.02 अरब डॉलर का वनस्पति तेल आयात किया है। रूसी युद्ध और यूक्रेन समेत अन्य महत्त्वपूर्ण देशों के साथ टकराव के हालात के मद्देनजर खाद्य तेल आयात का बिल करीब 18 अरब डॉलर या उससे भी अधिक उछल सकता है।

यदि रूस से प्राकृतिक गैस की आपूर्ति कम होगी, तो अमोनिया और यूरिया की आपूर्ति भी प्रभावित होगी, लिहाजा उनकी कीमतें बढ़ेंगी। ये उर्वरक खेती के लिए खाद का काम करते रहे हैं। भारत अपने रक्षा उपकरणों और हथियारों का 63 फीसदी से ज्यादा आयात रूस से ही करता रहा है। युद्ध जैसे हालात की आशंका से दुनियाभर के शेयर बाजारों की ही तरह भारतीय बाजार भी गिरावट का शिकार हो रहे हैं ऐसे में लोगों को वहां भी नुकसान हो रहा है।

यूक्रेन पर हमला करके अमेरिका और उसके नाटो सहयोगियों को सैन्य चुनौती देने का रूस का फैसला पारस्परिक रूप से फायदेमंद लग सकता है। वो इससे दुनिया को ये अहसास कराने की कोशिश कर रहा है कि वही अमेरिका के सामने खड़ा सबसे ताकतवर देश है। क्योंकि रूस की एक मजबूत देश वाली तस्वीर धुंधली होती जा रही थी और उसकी जगह चीन की तस्वीर साफ दिखने लगी थी। लेकिन रूस की यूक्रेन पर की गई कार्रवाई वैश्विक आर्थिक व्यवस्था के मूल आधार को बदल सकती है। कुल मिलाकर अगर ये संकट ज्यादा लंबा खिंचा तो न केवल देश की अर्थव्यवस्था बल्कि लोगों के घर का बजट भी गड़बड़ा सकता है। साथ ही अगर दुनिया के कुछ और देश भी इस युद्ध में शामिल होते हैं तो हालात के संकट का आंकलन नए सिरे से करना होगा। बहरहाल अभी पूरी दुनिया के लिए यह युद्ध एक बड़ी बाधा है, भयानक संकट भी बन सकता है, लिहाजा यह युद्ध ही समाप्त किया जाना चाहिए।

-लेखक राज्य मुख्यालय पर मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं।

By VASHISHTHA VANI

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