राजस्थान में चल रहे राजनीतिक संकट को लेकर अभी तक संशय के हालात बने हुए हैं। बीते 25 सितंबर को कांग्रेस की विधायक दल की बैठक को लेकर जयपुर में हुए हंगामे के बाद कांग्रेस में अंदरखाने चल रही उठापठक पूरी तरह से खुलकर सड़क पर सामने आ गई थी। इस घटना को लेकर कांग्रेस आलाकमान काफी नाराज बताई जा रही है।

अशोक गहलोत ने दिल्ली जा कर इसके लिए सोनिया गांधी से माफी भी मांगी। यह घटनाक्रम पूरे देशभर में काफी सुर्खियों में रहा। अब एक बार फिर गहलोत ने इशारों ही इशारों में यह राजनीति के गुणा भाग की बात है ,कहकर सीएम की कुर्सी के संशय को और बढ़ा दिया है।
गांधी की जयंती पर अशोक गहलोत ने जो कुछ भी कहा उससे जाहिर है कि अब वे राजस्थान के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा नहीं देंगे। जानकार लोगों का कहना है कि कमजोर हो चुके गांधी परिवार में अब इतनी हिम्मत नहीं कि वह गहलोत को मुख्यमंत्री पद छोड़ने के लिए कहे। बीकानेर में गहलोत ने कहा था कि उनके कथनों के मायने होते हैं, सही भी है।
अशोक गहलोत ने कहा कि 25 सितंबर को कांग्रेस के जो दो पर्यवेक्षक मल्लिकार्जुन खडग़े और अजय माकन जयपुर आए थे। उन्हें राजस्थान के 102 कांग्रेसी विधायकों का भी ख्याल रखना चाहिए था। गहलोत यह बात अब कह रहे हैं, जबकि 29 सितंबर को गहलोत ने दिल्ली में कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद कहा कि कांग्रेस की परंपरा के अनुरूप विधायक दल की बैठक में एक लाइन का प्रस्ताव पास नहीं हो सका, इसके लिए वे (गहलोत) जिम्मेदार है। इस सब के लिए माफी मांगते है। नैतिकता के नाते अब वे राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव भी नहीं लडेगें। जानकार लोगों का कहना है कि अशोक गहलोत का राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव नहीं लड़ना भी एक कारण है। उन्हें पता है कि गांधी परिवार और कांग्रेस की वर्तमान स्थिति किस प्रकार की है और भविष्य में कैसी रहने वाली है। ऐसे में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का ताज उनके लिए जी का जंजाल बन सकता है।

राजस्थान में 25 सितंबर को कांग्रेस विधायक दल की बैठक के बहिष्कार के मामले में दिल्ली की ओर से कहा गया था कि एक दो दिन में राजस्थान के मुख्यमंत्री का मामला सुलझा दिया जावेगा। लेकिन इतने दिनों के बाद अब भी कांग्रेस विधायक दल की बैठक होने को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है। वहीं मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अचानक 2 दिन से बयानों को लेकर सुर्खियों में आ गए है। उन्होंने अपने बयानों में पहले जहां अनिश्चितता बढाने का काम किया। साथ ही उन्होंने राजस्थान आए पर्यवेक्षकों मल्लिकार्जन खड़गे और अजय माकन को लेकर भी प्रशन खड़े कर दिये हैं।

जिस प्रकार गहलोत मीडिया में बयान दे रहे हे उसके अनुसार राजस्थान से किसी भी प्रकार से मुख्यमंत्री का पद नहीं छोड़ने की रणनीति बना ली है। अब उसी के अनुसार ये राजनीति के नये मुहावरे गढ रहे है। गहलोत के पास बहुमत है। जैसा कि कहा जा रहा है कि 102 विधायक उनके पास है। उनके समर्थन में कुछ भी करने को तैयार है। जिस प्रकार उनहोंने 25 सितम्बर को किया, तो फिर इतना यह भ्रम जाल क्यों और किस के लिए फैलाया जा रहा है। 102 विधायक गहलोत के पक्ष में तो सचिन पायलट किस आधार पर दावा पेश कर रहे है? केन्द्रीय नेत्त्व सचिन पायलट को बिना विधायकों के समर्थन के कैसे मुख्यमंत्री बना सकता है? यदि वह ऐसा करता भी है तो प्रदेश में ही नहीं देश में भी इस परिवर्तन का गलत मैसेज जाएगा। शायद यही सोच कर सोनियां ने कुछ समय के लिए इस प्रकरण को ठण्डे बस्ते में डाल दिया है।
जानकार लोगों का कहना है कि अभी तक ये आम धारणा थी कि अशोक गहलोत को सोनिया गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ावना चाहती थीं और इसलिए राजस्थान के सीएम पद से इस्तीफा मांगा जा रहा था। कांग्रेस से जुड़े शीर्ष सूत्रों के मुताबिक अशोक गहलोत को हटाने की स्क्रिप्ट अगस्त में ही लिखी जा चुकी थी। अगस्त में ये आम राय बन चुकी थी कि राजस्थान में अशोक गहलोत के नेतृत्व में 2023 में कांग्रेस सरकार रिपीट होना नामुमकिन सा है। कांग्रेस अलाकमान ने फीड बैक और सर्वे से ये आकलन कराया था। ये धारणा तब और पुष्ट हुई जब राजस्थान में करौली, जोधपुर समेत कुछ जगह पर दंगे सांप्रदायिक तनाव की घटनाएं बढ़ीं और गहलोत सरकार तुष्टीकरण के आरोपों से भी घिर गई थी।

राजस्थान में गहलोत की अगुवाई में फिर से कांग्रेस की सरकार मुमकिन नहीं है। सचिन पायलट के बाद खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने दो दिन पहले कहा था कि अगस्त में ही वे पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को कह चुके थे कि राजस्थान में सरकार रिपीट करवाने की जो गांरटी दे रहा हो उसे सीएम बना दें। यानी गहलोत जानते थे कि राजस्थान में कांग्रेस सरकार के हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि पायलट को कमान सौंप दें तब भी सरकार की वापसी आसान नहीं है।

जानकारी के अनुसार पार्टी हाईकमान ने 2018 के विधानसभा चुनाव के नतीजों के आंकड़े भी खंगाले। उन आंकड़ों में साफ था कि सचिन पायलट के प्रभाव वाले पूर्वी राजस्थान में कांग्रेस ने इकतरफा जीत दर्ज की थी जबकि अशोक गहलोत के प्रभाव वाले पश्चिमी राजस्थान में कांग्रेस का प्रदर्शन निराशाजनक रहा था। पार्टी के एक स्टडी ग्रुप की राय में कहा गया था कि सचिन पायलट राजस्थान में अभी भी काफी लोकप्रिय है। अगर गहलोत की जगह पायलट को कमान सौंपी जाए तो पार्टी को न सिर्फ 2023 के विधानसभा चुनाव में 2024 के लोकसभा चुनाव में भी फायदा मिल सकता है।

दूसरा आकलन ये बताया जा रहा है कि पायलट को कमान सौंपने से राजस्थान के अलावा हरियाणा, यूपी, एमपी और कश्मीर में भी गुर्जर वोट बैंक और पायलट की युवाओं में लोकप्रियता का फायदा मिल सकता है। इस बीच गांधी परिवार में ये भी ये धारणा थी कि गहलोत के पास संगठन का लंबा अनुभव है। गांधी परिवार के विश्वासपात्र रहे। ऐसे में गहलोत को कांग्रेस अध्यक्ष की कमान सौंपने में बुराई नहीं. एक वजह और रही कि 2022 की बगावत के बाद सचिन पायलट ने गांधी परिवार और पार्टी हाईकमान का भरोसा जीतने में कामयाबी हासिल की। न सिर्फ पायलट ने इन दो साल में कई राज्यों में पार्टी का प्रचार किया। राजस्थान में भी गहलोत की मुखालफत करने से बचे।
मुख्यमंत्री गहलोत इन दिनों जिस प्रकार के बयान दे रहे है उससे लगता है कि आला कमान केन्द्रीय अध्यक्ष के चुनाव के बाद भी उनके विरूद्ध कोई कदम उठा सकता है। इस लिए वे चौकनें रह कर इस प्रकार के बयान दे रहे है कि जिससे राजस्थान के 102 विधायक एक जुट रहने के साथ साथ आलाकमान को भी डर रहे कि गहलोत विरोधी कदम कांग्रेस की सत्ता के लिए गलत नहीं हो जाय। वैसे भी 2020 से लेकर अब तक राजस्थान में गहलोत बनाम पायलट का अखाड़ा जमा हुआ है। ऐसे में मंत्रियों की मंत्रणा जनता के लिए नहीं होकर अपने लिए हो रही है। प्रशासन उंघने लगा है। सरकारी योजनाओं ने सरकना ही बंद कर दिया है। भ्रष्टाचार भड़भूजे की भाड़ की तरह सीमांए लांध रहा है। प्रदेश के बेरोजगार गुजरात में गहलोत सरकार की उपलब्धियों के बैनर, तख्तियां लेकर दांडी यात्रा निकाल रहे है। इनके इस अन्तहीन अखाड़े की मीडिया में बनती हैड लाईन एवं ब्रेकिंग न्युज से प्रदेश की जनता भी उकता चुकी है। अब इस अखाड़े के तम्बू जल्दी हटा दिये जाने चाहिए, नहीं तो जनता की उकताहट से लाभ कम नुकसान अधिक होता है।