मुख्यमंत्री अशोक गहलोत हमेशा संयमित भाषा में बात करते है। लेकिन गत दिनों एक चैनल को दिये गये इंटरव्यूह में उन्होंने सचिन पायलट को लेकर जिस प्रकार की भाषा का प्रयोग किया। उसे लेकर कांग्रेस पार्टी की आंतरिक स्थिति का सहज ही अंदाजा लगया जा सकता है। 2020 में पायलट खेमे की बगावत के बाद उन्होंने पहली बार अपने धुर विरोधी सचिन पायलट पर खुलकर हमला बोला है। इस हमले से राहुल गांधी की यात्रा के राजस्थान आने से कुछ दिन पहले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सियासी खींचतान का नया अध्याय शुरू कर दिया है। गहलोत का इस प्रकार बोलना आने वाले किसी सियासी संकट की आहट की ओर इशारा कर रहा है।

गहलोत और पायलट के बीच तल्खी 23 नवंबर 2022 को पार्टी की बैठक में भी दिखी। दरअसल, राहुल गाँधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ राजस्थान में आने वाली है। इसकी तैयारियों को लेकर एक बैठक बुलाई गई थी। इस बैठक में सीएम गहलोत और पायलट दूर-दूर बैठे। इस दौरान दोनों नेताओं ने बात भी नहीं की। वहीं, बैठक खत्म होने से पहले ही सचिन पायलट वहाँ से चले गए। सीएम गहलोत ने मुख्यमंत्री की कुर्सी बचाने के लिए पार्टी अध्यक्ष पद की कुर्सी ठुकरा दी थी। गहलोत को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनकर सीएम की कुर्सी सचिन पायलट को सौंपने के लिए कहा गया था। हालाँकि, गहलोत ने ऐसी बिसात बैठाई कि पायलट की यह कोशिश नाकाम हो गई। फिर भी पायलट ने किसी ना किसी प्रकार आलाकमान पर प्रदेश में बदलाव को लेकर दबाव बना रखा था। इसी से गहलोत खफा बताये जा रहे है।

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के सचिन पायलट को लेकर दिए गए बयान से कांग्रेस आलाकमान नाखुश है। कांग्रेस आलाकमान ने गहलोत और पायलट को पूर्व में संगठन महासचिव के.सी.वेणुगोपाल की ओर से जारी की गई गाइडलाइन की पालन करते हुए सार्वजनिक बयानबाजी नहीं करने का संदेश पहुंचाया है। सूत्रों के अनुसार, राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा प्रदेश से गुजरने के बाद सत्ता और संगठन में बड़ा बदलाव करने का मानस पार्टी आलाकमान ने बनाया है। राहुल की यात्रा चार दिसंबर को प्रदेश में प्रवेश करेगी और 17दिसंबर को अलवर के रास्ते हरियाणा में प्रवेश करेगी। इस बीच वेणुगोपाल 29 नवंबर को जयपुर पहुंचेंगे। उनकी यात्रा का अधिकारिक कार्यक्रम तो भारत जोड़ो यात्रा को लेकर बताया गया है, लेकिन मुख्य मकसद विधायकों व वरिष्ठ नेताओं के साथ संवाद करना है। वेणुगोपाल की रिपोर्ट के आधार पर आलाकमान सत्ता और संगठन में बदलाव करेगा।

जानकारी के अनुसार अशोक गहलोत के ब्यान से उत्पन्न हालातों को लेकर मुख्यमंत्री आवास पर उनके निकटस्थ मंत्रियों व नेताओं ने मुलाकात कर आगामी रणनीति पर चर्चा की। पायलट की राहुल से बात हुई है। पायलट खेमे के विधायकों ने जयपुर में आपस में मिलकर चर्चा की। दरअसल, गहलोत ने एक न्यूज चैनल से बातचीत में पायलट को किसी भी स्थिति में सीएम नहीं बनने देने की बात कही थी। उन्होंने कहा था कि पायलट खेमे के विधायकों ने भाजपा से दस-दस करोड़ रुपये रकम ली थी।
पंजाब कांग्रेस के प्रभारी हरीश चौधरी के अनुसार कम से कम पद पर बैठे लोगों को गरिमा रखनी चाहिए। चौधरी ने कहा कि गहलोत ने खुद जाट और राजपूत के नाम पर भ्रांति फैलाई थी, जबकि हमने ऐसी कोई बात नहीं की है। उन्होंने कहा कि वेणुगोपाल द्वारा तय की गई गाइडलाइन का सभी को पालन करना चाहिए। सीएम को इस तरह का बयान नहीं देना चाहिए था। अनुसूचित आयोग के अध्यक्ष विधायक खिलाड़ी लाल बैरवा ने कहा कि सीएम के बयान से कांग्रेस कार्यकर्ताओं की भावना को ठेस पहुंची है। सीएम को इस तरह का बयान नहीं देना चाहिए था। उन्होंने कहा कि सीएम को लेकर आलाकमान शीघ्र निर्णय करेगा। पायलट ने कभी आलाकमान को चुनौती नहीं दी, जबकि गहलोत ने तो आलाकमान को ही चुनौती दी है।
अब तक पायलट के विरूद्ध गहलोत के समर्थक विधायक और मंत्री बोल रहे थे, अब खुद गहलोत ने उन पर मुहर लगा दी है। गहलोत ने 25 सितंबर की बगावत को क्लीन चिट देकर खुद की सियासी लाइन को क्लीयर कर दिया है। इससे हाईकमान के फैसले पर भी सवालिया निशान लग गया है। 25 सितंबर को विधायक दल की बैठक का बहिष्कार करने से जो हालात पैदा हुए थे, कांग्रेस अब दो महीने बाद वहीं आकर खड़ी हो गई है। गहलोत ने धमकी भरे लहजे में साफ इशारा कर दिया कि पायलट को अब किसी भी रूप में लीडरशिप वाली पोजिशन नहीं लेने दी जाएगी। गहलोत और पायलट खेमों के बीच झगड़े की सबसे बड़ी जड़ ही यही है।

राहुल की यात्रा से पहले अशोक गहलोत के विस्फोटक इंटरव्यू को राजनीतिक जानकार बड़े मैसेज के लिए सोची समझी रणनीति मान रहे हैं। पायलट पर हमले की टाइमिंग और सियासी लाइन क्लीयर करने के बाद अब कांग्रेस में टकराव खुलकर सामने आ गया है। गहलोत ने 25 सितंबर को विधायक दल की बैठक के बहिष्कार की समर्थक विधायकों के कदम का पहली बार खुलकर समर्थन करके उसे पायलट के खिलाफ बगावत करार देकर नई लड़ाई का ऐलान कर दिया है। अब गहलोत ने हाईकमान की राय के खिलाफ जाकर बागी तेवर दिखाने वाले विधायकों-मंत्रियों का खुलकर बचाव करने के साथ ही इस घटना के बाद हुए फैसलों पर भी सवाल उठा दिए हैं।

अजय माकन पर गहलोत समर्थक मंत्रियों ने पक्षपात करने और पायलट के समर्थन में विधायकों को फोन करने के आरोप लगाए थे। गहलोत ने उन आरोपों को सही बताकर माकन की भूमिका पर भी सवाल उठा दिए हैं। अब मौजूदा हालात में माकन के लिए प्रदेश प्रभारी बने रहने के आसार कम हैं। 25 सितंबर को हुई बगावत के वक्त गहलोत खुद अलग थे और उनके समर्थक मंत्री विधायक आगे थे, इस बार पायलट पर हमले की कमान खुद गहलोत ने संभाली है। राहुल गांधी की यात्रा से पहले राजस्थान कांग्रेस में दरार और गहरा गई है। यह भी साफ है कि गहलोत और पायलट खेमों के बीच मतभेद मनभेद में बदल चुके हैं, जिन्हें मिटाना अब आसान नहीं है।
राजनीतिक पण्डितों का बहना है कि 25 सितंबर को गहलोत समर्थक 90 विधायकों ने पायलट के विरोध में विधान सभा अध्यक्ष सीपी जोशी को इस्तीफे दे दिए थे। माना जा रहा है कि ये इस्तीफे ही प्रेशर पॉलिटिक्स का सबसे बड़ा हथियार हैं। अशोक गहलोत पर अगर प्रेशर बढ़ा तो उनके समर्थक विधायक इस्तीफे मंजूर करवा सकते हैं। ऐसी हालत में विवाद और बढ़ने पर बात विधानसभा भंग कराने तक पर जा सकती है, इस्तीफों का सियासी मकसद यही माना जा रहा है। बताया जाता है कि हाईकमान इसी वजह से राजस्थान को लेकर जलदबाजी करने के मूड में नहीं है।

सचिन पायलट को लेकर अशोक गहलोत के तेवरों में आई अचानक उग्रता के पीछे सियासी जानकार कई तरह के कयास लगा रहे हैं। एक संभावना यह भी है कि राजस्थान को लेकर हाईकमान आगे बड़ा फैसला करने वाला हो और इसकी भनक गहलोत को लग गई हो। गहलोत के इंटरव्यू की टाइमिंग और पायलट को किसी भी रूप में लीडरशिप पोजिशन पर स्वीकार नहीं करने की बात हाईकमान के लिए भी एक चेतावनी के तौर पर मानी जा रही है।
राजस्थान में 25 सितंबर के बाद से जो सियासी ड्रामा चल रहा है उसका अंतिम छोर कहां व कैसा होगा। यह इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि कांग्रेस आला कमान इस बात को तो मान चुका है कि राजथान में कांग्रेस पार्टी की सरकार नहीं होकर गहलोत की सरकार है। दूसरा राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का जो रूट बनाया गया है। वह उन स्थानों से गुजर रहा है। जहां पायलट समर्थक को की संख्या ज्यादा बताई जा रही है। जानकार लोगों का तो यहां तक कहना है कि यात्रा के इस रूट को बदलने का भी प्रयास भी हुआ था लेकिन उसमें सफलता नहीं मिली। मुख्यमंत्री गहलोत ने अपने इरादों से आलाकमान और पायलट को सीधा और तीखा संदेश दे दिया है। अब आलाकमान क्या निर्णय लेगा अलग बात है। लेकिन गहलोत और पायलट की लड़ाई अब सड़क पर आ चुकी है। जिसका असर राहुल गांधी की भारत जोड़ों यात्रा पर भी पड़ेगा है।