- राजस्थान से रामस्वरूप रावतसरे की रिपोर्ट
जयपुर/वशिष्ठ वाणी। स्वदेशी हथियार विकसित करने के मोर्चे पर देश को एक और बड़ी सफलता मिली है। टाटा एडवांस सिस्टम लिमिटेड ने पोकरण फायरिंग रेंज में एएलएस-50 लॉइटरिंग म्यूनिशिन का सफल परीक्षण किया है। मेक इन इंडिया के तहत रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन और टाटा एडवांस डिफेंस सिस्टम लिमिटेड के एक्सपर्ट की मौजूदगी में गुरुवार व शुक्रवार दो दिन तक टाटा एडवांस डिफेंस सिस्टम लिमिटेड की ओर से बनाए गए स्वदेशी बमवाहक आत्मघाती ड्रोन ।
- 50 ड्रोन का सफल परीक्षण किया गया।
रक्षा सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इस ड्रोन ने बेहद सटीकता के साथ अपने लक्ष्य पर प्रहार किया। इसे सुसाइडल या आत्मघाती ड्रोन भी कहा जाता है। हाल के वर्षों में इस तरह के ड्रोन का उपयोग बहुत बढ़ा है। यूक्रेन की सेना रूस के खिलाफ इस सुसाइडल ड्रोन का बेहद शानदार अंदाज में उपयोग ले रही है। टाटा एडवांस सिस्टम के युवा वैज्ञानिकों की एक टीम ने इसे विकसित किया है। इसका कुछ माह पूर्व लद्दाख के हाई एल्टीट्यूड वाले इलाके में सफल परीक्षण हो चुका है। लगातार सफल परीक्षण के बाद इसके सेना में शामिल होने का मार्ग प्रशस्त हो चुका है। सेना की जरुरत के अनुसार इसकी दूरी तय करने की क्षमता व हथियार ले जाने की भार क्षमता को बढ़ाया जा सकता है। यह ड्रोन छोटे व तंग स्थान पर युद्ध के दौरान बेहद कारगर हथियार साबित होता है। स्टील्थ क्षमता वाला यह ड्रोन हवा में तैरता हुआ अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ता है। इसका ऑपरेटर सैनिक लगातार इसे नियंत्रित करता रहता है। इसमें लगे कैमरों से लक्ष्य की पहचान कर से नीचे गिरा दिया जाता है। इसमें लगे बम सीधे अपने लक्ष्य पर प्रहार कर उसे ध्वस्त कर देते है। यह सीधे वर्टिकल मोड में उड़ान भरता है उसी अंदाज में लक्ष्य पर हमला बोलता है।

क्रूज मिसाइल व मानव रहित विमान की अपेक्षा इसके दाम बेहद कम होते है। इसका सिर्फ एक बार ही उपयोग किया जा सकता है। हथियार लगाने का सिस्टम इसके भीतर ही लगा रहता है। यह हवा में तैरता हुआ आगे बढ़ता है। इसे पूरी तरह से नियंत्रित किया जा सकता है। इस तरह के ड्रोन की अधिकतम रेंज एक हजार किलोमीटर तक होती है। यह 190 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से आगे बढ़ता है।
यह एक बार में लगातार छह घंटे तक उड़ान भर सकता है। इसमें 37 हॉर्स पावर की क्षमता के आसपास का एक इंजन लगा होता है। 135 किलोग्राम वजनी यह ड्रोन एक बार में 23 किलोग्राम भार के बम ढो सकता है। यह ढाई मीटर लम्बा और तीन मीटर चौड़ा होता है। इसमें उच्च क्षमता का कैमरा होता है, जो कमांड स्टेशन पर फोटो भेजता रहता है। इसे देख कमांड करने वाले अपना लक्ष्य तय करते है। इस तरह के ड्रोन का सबसे पहले निर्माण इजरायल ने किया था। धीरे-धीरे इसमें कई सुधार किए गए।
यह एक तरह से मानव रहित विमान के समान ही होता है। इसमें अलग से बम लगे होते है। इसमें कुछ को कमांड सेंटर से कंट्रोल किया जा सकता है। वहीं कुछेक ऐसे होते हैं कि एक बार लक्ष्य तय कर उन्हें छोड़ दिया जाता है। इसके बाद ये अपने लक्ष्य पर अपने आप प्रहार करते हैं। इस तरह के ड्रोन छोटे युद्ध में बेहद कारगर साबित होते हैं। इनकी सहायता से करगिल युद्ध जैसी स्थिति के दौरान पहाड़ों की चोटी पर बैठे दुश्मन के सैनिकों के बंकरों को बेहद आसानी व सटीकता से उड़ाया जा सकता है। वहीं आतंकी हमलों व जंगल युद्ध के दौरान भी इस तरह के ड्रोन अपनी उपयोगिता साबित कर चुके हैं।