भारतीय क्रिकेट ने अपने 88 साल के लम्बे इतिहास में बहुत बदलाव देखें हैं।आज भारत के पास विश्व स्तरीय बल्लेबाज तो हैं ही साथ में ऐसे रफ्तार के सौदागर भी है जिनकी गति से बल्लेबाजी का हर बड़ा नाम खौफ खाता है। तेज़ गेंदबाज़ी में हम वेस्टइंडीज और आस्ट्रेलिया के बगलगीर हैं, कि एक साथ चार तेज गेंदबाजों को लेकर मैदान में उतरते हैं। आस्ट्रेलिया में चल रहे टी20 विश्व कप में भारतीय टीम की प्लेइंग इलेवन में चार तेज गेंदबाज रहते हैं। लेकिन हम आज जिस मुकाम पर खड़े हैं वहां तक पहुंचने में काफी संघर्ष किया है। भले ही भारत ने हमेशा विश्व क्रिकेट को गेंदबाजी और बल्लेबाजी में बड़े नाम दिए हैं। लेकिन विश्व क्रिकेट में भारत की पहचान उंगलियों और कलाईयों से गेंद को नचाने वाले स्पिनरों के विशेषज्ञ देश के रूप में थी। यूं तो भारत ने अपने पहले टेस्ट में ही अमर सिंह और मोहम्मद निसार जैसे तेज गेंदबाजों की जोड़ी उतारी थी,जिनकी गति आज के कई तेज गेंदबाजों से अधिक थी। लेकिन इसके बावजूद भी कपिल देव के उभार तक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की सफलता की कहानी कलाईयों और उंगलियों के स्पिन जादूगर ही लिखते थे। ईरापल्ली प्रसन्ना, वेंकटराघवन, भगवत चंद्रशेखर और खब्बू बिशन सिंह बेदी की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तूती बोलती थी। बड़े से बड़े बल्लेबाज भी इनकी नाचती गेंदों के सामने डिस्को करते नजर आते थे। स्पिन चौकड़ी के बाद भी दिलीप दोषी, शिवलाल यादव, अरशद अय्यूब से लेकर मंनिंदर सिंह और अनिल कुंबले तक कलाईयों और उंगलियों के जादूगरों ने मैदान के बीच में विश्व क्रिकेट के हर बड़े नाम को छकाया है। यहां एक बात का जिक्र करना चाहूंगा कि एक बार भारत को पहला वर्ल्डकप जिताने वाले कप्तान और महान क्रिकेटर कपिल देव जब 1975 में मुंबई के एक मैदान पर अंडर-19 कैंप में हिस्सा लेने आए थे, तब उन्होंने खिलाड़ियों को मिलने वाली कम खाने की शिकायत की थी। 16 साल के कपिल देव ने बीसीसीआई के उस समय के सचिव से शिकायत की थी कि वह एक तेज़ गेंदबाज़ हैं, ऐसे में उन्हें दूसरों से ज्यादा खाना चाहिए। तब उन्हें जवाब मिला था कि इस देश में एक भी तेज़ गेंदबाज नहीं है।
ये बात सही भी थी क्योंकि उस समय तक भारतीय क्रिकेट टीम की गेंदबाजी की पहचान सिर्फ स्पिनर्स के साथ होती थी। 1960 से 1970 के दशक में टीम इंडिया के पास एक ऐसी चौकड़ी थी, जिसने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया था। ईरापली प्रसन्ना (189 विकेट), श्रीनिवास वेंकटराघवन (156), भगवत चंद्रशेखर (242) और बिशन सिंह बेदी (266) विकेट, इन चारों स्पिनर्स की चौकड़ी भारतीय पिचों पर तबाही मचा देती थी। भारतीय पिचों के अलावा बाहर की पिचों पर भी चारों ने कई ऐसे स्पेल फेंके थे, जिन्होंने इतिहास रचा है। यही कारण है कि चार स्पिनर्स ने आपस में कुल 853 विकेट्स लिए थे।मुझे याद है कि कभी कभी तो ऐसा भी होता था कि मध्यम गति के गेंदबाजों से कुछ ओवर कराने के बाद गेंद की चमक को उतारने के लिए घिस दिया जाता था ताकि स्पिनर सही तरीके से गेंदबाजी कर सकें। आजादी के बाद अपने पैरों पर खड़ा हो रहे भारतीय क्रिकेट में स्पिनरों का वो स्वर्णिम काल था।
दरअसल, इसके पीछे का बड़ा कारण भी समझ आता है।साल 1932 में जब भारत ने अपना पहला टेस्ट मैच खेला था तब टीम इंडिया के पास दो तेज़ गेंदबाज थे। अमर सिंह और मोहम्मद निसार, दोनों पूरी ताकत के साथ बॉल फेंकते थे। दोनों ने भारत के लिए क्रमश: 7 और 6 टेस्ट मैच खेले, निसार ने 25 विकेट लिए और अमर सिंह ने 28 विकेट। लेकिन फर्स्ट क्लास क्रिकेट में दोनों के नाम सैकड़ों विकेट हैं। हालांकि, तब भारत ने क्रिकेट खेलना शुरू ही किया था और इंग्लैंड के भरोसे ही कुछ मैच खेलने को मिलते थे।लेकिन जब भारत का बंटवारा हुआ तब मोहम्मद निसार पाकिस्तान चले गए। बंटवारे का असर ये भी हुआ कि पंजाब से आने वाले भारी शरीर वाले पठान गेंदबाज पूरी तरह से पाकिस्तान में चले गए।
वहीं आजादी के बाद काफी बदलाव हुए, लेकिन पहली टेस्ट जीत हो या फिर पहली विदेशी जीत भारत हमेशा स्पिनर्स पर ही निर्भर रहा था। जबतक भारत को कपिल देव (434 विकेट) जैसा ऑलराउंडर नहीं मिला था, जो हरियाणा के गांव से आया और भारी शरीर के साथ तेज़ गेंद फेंकता था। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड ने तेज गेंदबाजों की खोज के लिए अभियान चलाया जिसका असर ये हुआ कि कपिल देव के आगे के दौर को देखें तो जवागल श्रीनाथ, वेंकटेश प्रसाद, अजित अगरकर, जहीर खान जैसे नाम आपको मिलते हैं, जिन्होंने बतौर तेज गेंदबाज ऐसी छाप छोड़ी जो लंबे वक्त तक याद रखी जाती है। जहीर खान तो अपने करियर के अंतिम पड़ाव में काफी खतरनाक गेंदबाज साबित हुए थे। हालांकि, इसके बाद भी लंबे दौर में ऐसा वक्त कभी नहीं आया जब विरोधी टीमें भारतीय तेज गेंदबाजी से खौफ खाएं।

लेकिन पिछले एक दशक और खासकर पिछले पांच साल के दौर को देखें तो भारतीय तेज गेंदबाजी की तस्वीर पूरी तरह से बदल गई है। अब टीम इंडिया के पास बेहद तेज गेंद डालने वाले बॉलर्स हैं तो स्विंग के जादूगर भी हैं। नई बॉल, पुरानी बॉल के स्पेशलिस्ट गेंदबाज भी हैं जो नई बॉल के साथ खेलते हैं तो पुरानी के साथ रिवर्स स्विंग कराते हैं। ईशांत शर्मा, प्रवीण कुमार, भुवनेश्वर कुमार से शुरू हुआ ये सिलसिला अब मोहम्मद शमी, मोहम्मद सिराज, जसप्रीत बुमराह, उमेश यादव, शार्दुल ठाकुर तक पहुंच गया है। अब इसमें अर्शदीप सिंह,उमरान मलिक, कुलदीप सेन और दीपक चाहर जैसे गेंदबाजों का भी नाम जुड़ गया है। इनके बूते भारत के अलावा साउथ अफ्रीका, फिर ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड में पिछले 4-5 साल में ऐसे कई मौके आए हैं, जब भारतीय टीम ने सिर्फ तेज गेंदबाजों के दम पर जीत दर्ज की है। ऑस्ट्रेलिया में जसप्रीत बुमराह और मोहम्मद सिराज का तूफान हो या फिर अब इंग्लैंड में तेज गेंदबाजों की चौकड़ी की ताकत हो. ऐसा मुश्किल ही हुआ है कि भारतीय टीम चार तेज गेंदबाजों के साथ खेल रही हो।
यहीं नहीं अब भारत के पास तुफानी गति से गेंदबाजी करने वाले गेंदबाज भी हैं। ये गेंदबाज हैं जम्मू कश्मीर से आने वाले उमरान मलिक। आईपीएल 2022 में उमरान ने 157 किलो मीटर की गति से गेंदबाजी कर समूची क्रिकेट दुनिया को चौका दिया है। भारत का यह गेंदबाज सबसे तेज गेंदबाजों की लिस्ट में नम्बर दो पर है।आईपीएल 2022 में खेलते हुए उमरान मलिक ने तेज गेंदबाजी की। उन्होंने दिल्ली कैपिटल्स के खिलाफ मुकाबले में 157 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से गेंद डाली और एक बड़ा कीर्तिमान स्थापित करने के अलावा दिग्गजों को पीछे छोड़ दिया। उनसे तेज गेंद शान टैंट ने ही डाली है। ऑस्ट्रेलिया का यह तेज गेंदबाज ज्यादा लम्बे समय तक आईपीएल नहीं खेला लेकिन तेजी के मामले में नम्बर एक रहा है। शॉन टैट ने साल 2011 में खेलते हुए आईपीएल की सबसे तेज गेंद डाली थी। यह रिकॉर्ड आज भी कायम है। उन्होंने करीबन 158 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से गेंद फेंकी थी।

हैदराबाद के तेज गेंदबाज उमरान मलिक भारत के सबसे तेज गेंदबाज बनकर क्रिकेट जगत की चर्चा में बने हुए हैं। इंडियन टी20 लीग 2022 सीज़न में, उमरान ने पूरे सीज़न में लगातार 150 किलोमीटर से अधिक की गति से गेंदबाजी की। उमरान मलिक ने इंडियन टी20 लीग के 2022 सीजन के दौरान भारत के सबसे तेज गेंदबाज का खिताब अपने नाम कर लिया है। लकी फर्ग्यूसन ने इंडियन टी20 लीग 2022 की सबसे तेज गेंद 157.3 किमी/घंटा की रफ्तार से फेंकी। उमरान मलिक दक्षिण अफ्रीका के एनरिक नॉर्टजे के साथ लीग के शीर्ष 5 सबसे तेज गेंदबाजों में सबसे तेज भारतीय गेंदबाज हैं। उमरान मलिक को भारत का सबसे तेज गेंदबाज माना जाता है। उन्होंने इतिहास में एक भारतीय गेंदबाज द्वारा सबसे तेज गेंद फेंकने का रिकॉर्ड बनाया। टी20 लीग 2022 के फाइनल में राजस्थान के खिलाफ 157.3 किमी/घंटा की गति से गेंदबाजी करने वाले लॉकी फर्ग्यूसन 2022 में सबसे तेज गेंदबाज हैं। उमरान मलिक को अभी न्यूज़ीलैंड दौरे के लिए भारत की एकदिवसीय और टी20 मैचों की टीम में शामिल किया गया है। उमरान ने सै मुश्ताक अली टी20 ट्राफी 2022 में भी कमाल का प्रदर्शन किया है। महाराष्ट्र के खिलाफ 4 विकेट लिए और बल्लेबाज के विकेट हवा में उड़ा दिए। हाल में हुए आस्ट्रेलिया के पूर्व कप्तान इयान चैपल ने उनकी तारीफ करते हुए कहा था कि इस खिलाड़ी की गेंदबाजी को कोई नजरअंदाज नहीं कर सकता है। इतनी बेहतरीन गेंदबाजी देख कर मज़ा आ गया।इसके अलावा ब्रेट ली, वसीम अकरम, रवि शास्त्री, सुनिल गवास्कर, डेल स्टेन जैसे खिलाड़ी भी उनकी प्रशंसा कर चुके हैं। उमरान मलिक जम्मू के एक साधारण परिवार से आते हैं। उनके पिता वहां फल की दुकान चलाते हैं। लेकिन पिता ने कभी उनको क्रिकेट से दूर रहने के लिए नहीं कहा।उनको पूर्व भारतीय आलराउंडर इरफान पठान ने पहचान और निखारा है।वह मध्यम गति नहीं असल के तेज़ गेंदबाज़ हैं।

इसी कड़ी में एक और नाम जुड़ा है, कुलदीप सेन का। मध्य प्रदेश के रीवा जिले से आने वाले कुलदीप सेन को भी न्यूजीलैंड दौरे के लिए टीम में शामिल किया गया है। कुलदीप 145 किलोमीटर से भी अधिक गति से लगातार गेंदबाजी करते हैं । वह गति के साथ बेहद नियंत्रित और विविधतापूर्ण गेंदबाजी भी करते हैं।कुलदीप बेहद साधारण परिवार से आते हैं। उनका शुरुआती करियर संघर्षभरा रहा है। उनके पिता रामपाल आज भी रीवा के सिरमौर चौराहे पर फाइन हेयर कटिंग नाम का सैलून चलाते हैं। बेटे के सिलेक्शन पर कुलदीप के पिता ने कहा- ‘बढ़िया है कि बेटा टीम इंडिया में चुन लिया गया। कुलदीप को अपने समय के घरेलू क्रिकेट के तेज गेंदबाज रहे एरिल एंथोनी ने कोचिंग दी है। उन्होंने कुलदीप को फ्री में कोचिंग दी। कुलदीप के संघर्ष पर एंथोनी ने कहा- ‘उसने बहुत संघर्ष किया है। एक समय उसके पास प्रैक्टिस के लिए जूते तक नहीं होते थे। मुझे अच्छे से याद है कि 2014 के न्यूजीलैंड दौरे के लिए टीम इंडिया में चुने गए ईश्वर पांडेय ने पहली बार अपने स्पाइक्स दिए थे। जिनसे कुलदीप अभ्यास करता था। वह गरीब घर से था। खेल के प्रति उसकी लगन और मेहनत को देखते हुए मैंने तय किया था कि कभी एक चवन्नी नहीं लूंगा। उसे झारखंड से रणजी खेलने वाले आनंद सिंह का भी भरपूर सहयोग मिला। उम्मीद है कि ये खिलाड़ी बहुत सफल होंगे जिससे प्रेरित लेकर और उमरान मलिक एवं कुलदीप सेन निकलेंगे।