• लेखक राजेश माहेश्वरी

देश की राजनीति का रूख 2024 की ओर मुड़ चुका है। राष्ट्रीय स्तर और प्रदेश स्तर के राजनीतिक दल 2024 की तैयारियों, दांव-पेंच और तिकड़मों में व्यस्त हो गए हैं। जिन राज्यो में इस वर्ष चुनाव होने हैं वहां का माहौल कुछ ज्यादा ही गर्माया हुआ है। विपक्ष इस बार 2024 का चुनाव फतेह करने का अवसर गंवाना नहीं चाहता। लेकिन विपक्ष की जीत के बीच में एकता की एक बड़ी बाधा खड़ी है, जो उसे दिल्ली की सत्ता तक पहुंचने नहीं दे रही है। विपक्ष ने 2014 और 2019 के आम चुनाव में एकता के प्रयास किये थे, लेकिन उसका अंजाम सर्वविदित है। असल में विपक्ष मोदी सरकार को केंद्र की सत्ता से हटाना तो चाहता है लेकिन चाहकर भी उसमें एकता स्थापित नहीं हो पाती, और उसके मंसूबे धरे के धरे रह जाते हैं। इस बार भी नये सिरे से कोशिशें शुरू हुई हैं। अब यह देखना अहम होगा कि 2024 में विपक्ष मोदी को किस प्रकार चुनौती देता है।

mamta-banerjee1

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में जीत के बाद टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने विपक्ष की धुरी बनने का प्रयास किया था। उन्होंने स्वयं को विपक्ष का मुख्य चेहरा साबित करने के लिए कोलकाता से लेकिन दाल गलती न देख वो दिल्ली से दूरी बनाये हुए हैं। महाराष्ट्र से शरद पवार ने भी विपक्ष का मुख्य चेहरा बनने की कोशिश की। महाराष्ट्र में महाअघाड़ी गठबंधन बनाने के बाद से उन्हें ऐसा लग रहा था कि महाराष्ट्र में एनसीपी-कांग्रेस और शिव सेना का सफल गठबंधन देश की राजनीति को एक नयी दिशा दिखाएगा। चूंकि इस गठबंधन के सूत्रधार और कर्ताधर्ता वहीं हैं, ऐसे में विपक्ष में उनके नाम पर सहमति बनने में अधिक दिक्कत पेश नहीं आएगी। उद्वव ठाकरे की सरकार गिरने के बाद से महाअघाड़ी कितने दिन तक मंच पर रहेगा ये गंभीर प्रश्न है। ऐसे में विपक्ष का चेहरा बनने के शरद पवार के प्रयासों पर भी पानी फिरता नजर आ रहा है।

बीजेपी के खिलाफ विपक्षी दलों में पिछले कुछ वक्त से लगातार एकजुट होने की बात की जा रही है. ऊपरी तौर पर सभी दल इसे स्वीकार कर रहे हैं लेकिन अंदर की सच्चाई कुछ और ही सामने आ रही है। हाल ही में नीतीश कुमार ने कांग्रेस के सामने विपक्षी एकता का पत्ता चला है। लेकिन, इस पर कांग्रेस ने नीतीश के बयान का स्वागत भी किया और कई सवाल भी खड़े कर दिए। इससे स्पष्ट हो गया है कि विपक्षी एकता फिलहाल एक अवधारणा के तौर पर ही काम कर रही है। नीतीश कुमार ने विपक्षी एकजुटता के लिए कांग्रेस की पहल का आग्रह किया है। उनका दावा है कि यदि 2024 में भाजपा बनाम विपक्ष का साझा उम्मीदवार के आधार पर चुनाव लड़ा जाता है, तो भाजपा 100 सीटों तक सिमट सकती है।

नीतीश के अतिउत्साह में कहे गये इस आंकड़े का गणित और राजनीति के लिहाज से क्या आधार है लेकिन कंाग्रेस समेत समूचा विपक्ष यह जानता है कि कोई गलतफहमी पालना ठीक नहीं है। बहरहाल कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता जयराम रमेश ने नीतीश के आग्रह और अपील का स्वागत किया है, लेकिन बिना नाम लिए यह तंज भी कसा है कि कुछ लोग विपक्ष की बैठकों में भाग लेते हैं, विपक्षी एकता के सरोकार भी लगातार जताते रहे हैं, लेकिन वे सत्ता-पक्ष की गोद में भी बैठते रहे हैं। असल में कांग्रेस नीतीश के रवैये को लेकर भी खुश नहीं है। श्रीनगर में बुलावे पर नहीं आना जबकि केसीआर के बुलावे पर अखिलेश, केजरीवाल का साथ रैली करना और नीतीश का उनसे मिलना भी कांग्रेस को नागवार गुजरा है। मायावती का रुख भी कांग्रेस गठबंधन के लिहाज से सही नहीं मानती है। इसीलिए कांग्रेस के सूत्र कहते हैं कि, इस तरह राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी एकता सम्भव नहीं है।

कांग्रेस हमेशा भाजपा का वैचारिक विरोध करती रही है। विपक्षी गठबंधन पर कांग्रेस अपने रायपुर राष्ट्रीय अधिवेशन के दौरान विमर्श करेगी और फिर कोई रणनीति तय करेगी। जयराम रमेश ने नीतीश ही नहीं, सभी विपक्षी दलों को यह जरूर स्पष्ट कर दिया है कि कांग्रेस के बिना कोई भी विपक्षी एकता सफल नहीं हो सकती, लिहाजा विपक्ष को कांग्रेस की छतरी तले ही एकजुट होना है। ऐसे में सवाल यह भी है कि क्या राहुल गांधी विपक्ष का चेहरा बन पाएंगे? सवाल यह भी है कि क्या विपक्ष राहुल गांधी को अपने नेता मानकर उनका नेतृत्व स्वीकार कर पाएगा? भारत जोड़ो यात्रा से कांग्रेस कितना मजबूत हुई ये तो आने वाला समय ही बताएगा लेकिन एक बात तो है कि राहुल राष्ट्रीय नेता के रूप में अपनी जगह बनाने में काफी हद तक सफल रहे जो उन्हें दूसरे विपक्षी नेताओं से कुछ ऊपर रखने में सहायक होगी। लेकिन ये भी उतना ही सही है कि ममता, अखिलेश, केसीआर जैसे क्षेत्रीय छत्रप उनकी रहनुमाई शायद ही स्वीकार करेंगे क्योंकि कांग्रेस उनके राज्य में अपना हिस्सा मांगे बिना नहीं रहेगी जो उन्हें स्वीकार्य नहीं होगा। राजनीतिक पंडितों के अनुसार, यदि इस साल होने वाले मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और कर्नाटक के चुनावों में कांग्रेस बेहतर प्रदर्शन करती है तो राहुल गांधी की 2024 की दावेदारी को और ज्यादा मजबूती मिल जाएगी।

राहुल गांधी की मजबूती से क्षेत्रीय दल असहज ही होंगे क्योंकि कांग्रेस की मजबूती का मतलब है कि उनका अपने-अपने राज्य में जनाधार कम हो जाएगा। ऐसे में विपक्ष मोदी का मुकाबला तो करना चाहता है कि लेकिन वो कांग्रेस को मजबूत होते देखना नहीं चाहता है। ऐसे में राष्ट्रीय मोर्चा की संभावनाएं क्षीण हैं, क्योंकि विपक्ष के भीतर ही विपक्ष मौजूद है। हालिया त्रिपुरा चुनाव का ही उदाहरण लें, तो एक तरफ वामदल और कांग्रेस का गठबंधन था, तो उनके विरोध में तृणमूल कांग्रेस चुनावी अखाड़े में है। इसके समानांतर केरल में वाममोर्चा और कांग्रेसी मोर्चा आमने-सामने होंगे। आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा, बंगाल आदि राज्यों में विपक्षी एकता की दिशा और दशा ही भिन्न है। वहां कई नेता प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षाएं पाले हुए हैं। यह दीगर है कि उनके राज्यों के बाहर उनकी स्वीकृति ‘शून्य’ सी है। वहीं आम आदमी पार्टी मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, कर्नाटक और मिजोरम राज्यों में सभी सीटों पर चुनाव लडने की रणनीति पर काम कर रही है। यह राजनीति कांग्रेस और नीतीश के विपक्षी इरादों के बिल्कुल विपरीत है। दरअसल विपक्षी एकता के बयान तो खूब आते रहे हैं, लेकिन प्रयास नहीं किए जा पा रहे हैं, जबकि आम चुनाव करीब 15 माह दूर ही हैं। चुनाव की दृष्टि से यह बहुत समय नहीं है।

कांग्रेस देश भर में ‘हाथ से हाथ’ जोडने के दिवास्वप्नों में ही डूबी है। उसे लगता है कि राहुल गांधी की यात्रा का प्रभाव और प्रयोग बेहद सफल रहा है, और राहुल गांधी मोदी का मुकाबला करने के लिए तैयार हो गए हैं। चुनावी यथार्थ यह भी है कि देश के 17 राज्यों में कांग्रेस का एक भी सांसद नहीं है। कुल मिलाकर कांग्रेस को पता है कि वो अपनी कीमत पर अपनी जमीन क्षेत्रीय दलों के हवाले नहीं करना चाहती है और कई राज्यों में क्षेत्रीय दल कांग्रेस को दोबारा पनपने या मजबूत होने नहीं देना चाहते। हालांकि, कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक, 2024 के पहले राज्यों के चुनावों के बाद दिसम्बर के आस-पास गठबंधन की सही तस्वीर सामने आएगी, तब सबकी असली स्थिति भी सामने होगी। राजनीतिक विशलेषकों के अनुसार आज जो विपक्षी मोर्चा आकार ग्रहण कर सकता है, वह संपूर्ण लामबंदी नहीं होगा। राष्ट्रीय मोर्चा भी नहीं होगा। राज्यों के स्तर पर, सुविधा के मुताबिक, गठबंधन किए जा सकते हैं।

लेखक राज्य मुख्यालय पर मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं।

By VASHISHTHA VANI

हिन्दी समाचार पत्र: Latest India News in Hindi, India Breaking News in Hindi

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

x