भागलपुर प्रमंडल के क्षेत्रीय अपर निदेशक(स्वास्थ्य सेवाएं) आज करेंगे मामले की जांच
- संवाददाता, भागलपुर।
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र सन्हौला विवादों की आग में झुलस रहा है। जिस कारण दूसरे को चन्गा कर घर भेजने वाला सन्हौला अस्पताल आज के समय खुद बीमार हो गया है। जी हां! आज यही दुर्दशा सन्हौला अस्पताल की हो गई है और चीख-चीख कर बयां कर रही है। अस्पताल दो गुटों की तपिश में झुलश रहा है। एक गुट के प्रशानिक लोग हैं जो अपने मनमानी और दादागिरी के साथ सन्हौला अस्पताल व अस्पताल कर्मियों को हिटलर की तरह चलाना चाहते हैं, दूसरे वे गुट है जो अस्पताल में हो रहे गलत व अत्याचार के विरुद्ध आवाज उठाते हैं तो इन्हें नौकरी से हाथ धोने का धमकी मिल रहा है।

प्रशानिक गुट के कर्मियों का कई ऑडियो व विडिओ इंटरनेट मीडिया पर वायरल हो रहा है, जिसमे इनकी दादागिरी साफ स्पष्ट उजागर हो रही है, ये अपने अधीनस्थ कर्मियों को धमका रहे है कि वे जैसे चाहेंगे वैसे अस्पताल को चलाएंगे और उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता, वायरल ऑडियो में अपने काली करतूतों का भी जिक्र करते हुए कहते है कि उसका बहुत बड़े नेता और पदाधिकारियों तक पहुंच है, एक ऑडियो में ये अपना मासिक पैकेट खर्च 90 हजार रुपये और बेटी का खर्च 60-90 हजार रुपये खर्च करने की बात कर रहे हैं, ये एक दिन में एक हजार रुपये की रजनीगंधा-तुलसी खाने और दो हजार रुपये गाड़ी में तेल भराने की बात करते हैं, ये धौंस जमाते हुए कहते हैं कि मैं अपनी नौकरी की इंटरव्यू देने के लिए नहीं गया, लेकिन डीएम ने उनके संबधी के फोन पर नौकरी की पहली सूची में पहला नाम जोड़कर नौकरी दिया है, उसके बाद भी छः माह बाद उसने नौकरी पर जॉइन किया है।
बात-बात में ये कर्मी अपनी औकात की चर्चा करते हुए सन्हौला अस्पताल को सत्यानाश करने की भी धमकी देते हुए कहते हैं कि उसका कुछ बिगड़ने वाला नहीं है। यह घटनाक्रम अस्पताल में कई माह से चल रहा है, इनके द्वारा घटनाक्रम के बाद अस्पताल में दर्जनों अजनबी लोगों के साथ आना-जाना, उठना-बैठना चर्चा का विषय बना हुआ है। दूसरे पक्ष के चंद कर्मी लोग हैं, जिनको उच्च पदाधिकारियों के सही जांच पर भरोसा है और इनके आवेदन पर आज(मंगलवार को) भागलपुर प्रमंडल के क्षेत्रीय अपर निदेशक(स्वास्थ्य सेवाएं) इस नामले की जांच करेंगे। इसके पूर्व जिन पदाधिकारियों ने इस मामले की जांच की है, वे लीपापोती कर मामले को रफा-दफा करने का प्रयास किये हैं। अतः बड़े पदाधिकारियों के ऊपर अब भरोसा रह गया है, कम से कम ये तो सही जांच करेंगे और अस्पताल को दादागिरी के चंगुल से मुक्त कराएंगे।
एक मामला और प्रकाश में आया है कि ये अपने अधीनस्थ स्वास्थ्यकर्मियों को कोरोना टीका स्थल तक जाने के लिए गाड़ी सुविधा बंद कर दिए है, जबकि दूसरे जगह गाड़ी की सुविधा दी जा रही है, और वेरिफायर को भी पहले टीका करण स्थल तक टीका पहुचाया जाता था, अब वे सुविधा बंद कर दी गई है। इनके दबाव से या तो अस्पताल कर्मी डर से इनके हां में हां मिलाते है, या प्रताड़ना का शिकार होना पड़ता है। कुछ पत्रकारों ने जब इनकी खबर चलाई थी तो इन्हें भी केश में फंसाने की धमकी मिली थी।