बेरोजगारी देश की पुरानी समस्या है। जिस भी दल की सरकार सत्ता में होती है, वो ये दावे करती है कि उसने रोजगार का सृजन किया। चुनाव के दौरान राजनीतिक दल जनता से लाखों नौकरियां देने का वायदा भी करते हैं। और किसके कितने वायदे पूरे होते हैं, ये सबको मालूम ही है। धनतेरस के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मेगा रिक्रूटमेंट ड्राइव की लॉन्चिंग की। इसके तहत 50 केंद्रीय मंत्रियों ने अलग-अलग लोकेशन पर 75 हजार 226 युवाओं को नियुक्ति पत्र, यानी अपॉइंटमेंट लेटर सौंपे।

इस ड्राइव के जरिए अगले डेढ़ साल, यानी दिसंबर 2023 तक 10 लाख युवाओं को नौकरी देने का टारगेट है। सभी भर्तियां यूपीएससी, रेलवे भर्ती बोर्ड और दूसरी केंद्रीय एजेंसियों के माध्यम से की जाएंगी। हालांकि, देश कोरोना महामारी के कारण पैदा हुई भयावह बेरोजगारी से बाहर आने लगा है, बावजूद इसके अभी भी स्थिति संतोषजनक नहीं कही जा सकती। विपक्ष खासकर कांग्रेस बेरोजगारी के मसले पर मोदी सरकार को घेरने का कोई मौका गंवाती नहीं है। बीते सिंतबर में जब आठ चीते विदेश से लाए गए तो उस समय कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट किया है कि 8 चीते तो आ गए। सरकार को भी आठ साल हो चुके हैं। हर साल 2 करोड़ नौकरियां देने का जो वायदा किया गया था, उसके मुताबिक 16 करोड़ नौकरियों का क्या हुआ? वैसे बेरोजगारी जैसे गंभीर मसले पर राजनीति कोई नयी बात नहीं है। ये हर दौर में जारी रहती है।

देश की बेरोजगारी दर 8.28 फीसदी तक पहुंच चुकी है। विश्व बैंक की रपट 2020 के मुताबिक भारत में 23.2 फीसदी युवाओं के पास ही नौकरी है। इस संदर्भ में पाकिस्तान, श्रीलंका और बांग्लादेश सरीखे देश भी भारत से बेहतर स्थिति में हैं। मिनिस्टरी ऑफ स्टैटिस्टिक्स एंड प्रोग्राम इम्प्लीमेंटेशन द्वारा 14 जून को जारी आंकड़ों के अनुसार इस वर्ष की पहली तिमाही में शहरी बेरोजगारी दर 7 फीसदी से कुछ अधिक है। विपक्षी दल हालिया भर्ती अभियान को 2024 के महासमर के राजनीतिक दांव के रूप में देखते हैं। निस्संदेह, किसी लोक कल्याणकारी सरकार का पहला नैतिक दायित्व है कि वह हर हाथ को काम देने की ईमानदार कोशिश करे। इसकी घोषणा महज राजनीतिक लाभ-हानि के एजेंडे के रूप में तो कदापि नहीं होनी चाहिए।

यहां सवाल सरकारी नौकरियों में परीक्षा, साक्षात्कार और चयन प्रक्रिया के विभिन्न चरणों को लेकर भी है। हाल ही में खबर आई थी कि हरियाणा न्यायिक लिखित परीक्षा के मुख्य टॉपर साक्षात्कार में पिछड़ गये। यह तार्किक नहीं है कि लिखित परीक्षा में कोई प्रत्याशी शानदार प्रदर्शन करे और साक्षात्कार में पिछड़ जाये। किसी प्रतिभागी की योग्यता में यह विरोधाभास हमारी चयन प्रक्रिया पर भी प्रश्नचिन्ह लगाता है। आये दिन हम प्रतियोगिता परीक्षाओं के पेपर आउट होने और कई तरह की धांधलियों की खबरें मीडिया में सुर्खियां बनते देख रहे हैं। आखिर क्या वजह है कि कुछ शातिर लोग हमारी प्रतियोगिता परीक्षा की चयन प्रक्रिया में सेंध लगाने में सफल हो जाते हैं। सरकारों की ओर से चयन प्रक्रिया में धांधली को रोकने के लिये जो उपाय टुकड़ों-टुकड़ों में किये जाते रहे हैं, वे कारगर होते नजर नहीं आते। यह देश की प्रतिभाओं के साथ घोर अन्याय ही है।

सवाल यह भी है कि जब सरकारी नौकरियां सिमट रही हैं और सरकार के गैर-उत्पादक खर्चों में लगातार वृद्धि हो रही है तो रोजगार अभियान महज सरकारी नौकरियों तक ही क्यों सीमित रहे? दुनिया में सबसे ज्यादा युवाओं के देश में हम ऐसी कार्य-संस्कृति विकसित नहीं कर पाये जो युवाओं को स्वावलंबी बनाये और निजी क्षेत्र में रोजगार के अवसरों में वृद्धि कर सके। जिससे देश में उत्पादकता में वृद्धि और युवाओं में उद्यमशीलता का विकास हो सके। आखिर अमृतमहोत्सव मना रहे देश में युवा सरकारी नौकरियों के सम्मोहन से मुक्त क्यों नहीं हो पा रहा है!

अगर गौर किया जाए तो हमारी शिक्षा प्रणाली में जो भारी विभाजन है, वह प्रतियोगियों के साथ नैसर्गिक न्याय नहीं करता। समाज का संपन्न तबका तो महंगे कोचिंग संस्थानों के बूते प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता के गुर हासिल कर लेता है लेकिन गरीब व ग्रामीण स्कूलों से निकले छात्र इस कड़ी स्पर्धा का मुकाबला नहीं कर पाते। हमारी चयन प्रक्रिया में तमाम तरह की विसंगतियां मौजूद हैं, जो प्रतियोगियों के साथ न्याय नहीं करती। निस्संदेह, हमारी शिक्षा प्रणाली भी बदलते वक्त के अनुरूप खुद को ढाल नहीं पायी है। बदलते वैश्विक परिदृश्य में प्रतिस्पर्धा और समय की जरूरतों के रोजगार के लिये युवाओं को प्रशिक्षित किये जाने की जरूरत है। उनमें कौशल विकास को बढ़ावा दिया जाना चाहिए, जिससे युवाओं की सरकारी नौकरियों पर निर्भरता को कम किया जा सके। विडंबना है कि दुनिया में सबसे ज्यादा युवाओं के देश में हम रोजगार के पर्याप्त अवसर विकसित नहीं कर पाये हैं। सरकार को निजी क्षेत्र के साथ मिलकर रोजगार अभियान चलाने चाहिए, जिससे रोजगार के साथ देश में उत्पादन भी बढ़े।

भारत में 5 इंजीनियर, 10 स्नातक और 4 एमबीए के पीछे औसतन एक नौकरी ही है। प्रधानमंत्री मोदी ने बीते दिनों 10 लाख नौकरियां देने की घोषणा की थी। केंद्र सरकार में 9.5 लाख से ज्यादा पद खाली पड़े हैं। क्या उन्हें ही भरा जाएगा? जो भी हो, लेकिन विभिन्न मंत्रालयों ने नौकरी देने की कोई ठोस कवायद फिलहाल शुरू नहीं की है। बेहद गंभीर तथ्य राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के जरिए सामने आया है कि 42,000 से अधिक दिहाड़ीदार मजदूरों ने आत्महत्या की है, क्योंकि उन्हें दिहाड़ी नहीं मिल पा रही थी और कोई वैकल्पिक काम भी उनके पास नहीं था। देश के 10 राज्यों में मनरेगा के तहत रोजगार की व्यवस्था भी बंद कर दी गई थी, क्योंकि उनके पास बजट ही नहीं था।

पिछले साल केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने संसद में बताया था कि केंद्र सरकार के विभागों में एक मार्च, 2020 तक 8.72 लाख पद खाली पड़े थे। केंद्र सरकार के विभागों में कुल 40 लाख 4 हजार पद हैं, जिनमें से 31 लाख 32 हजार भरे हुए थे। 2016-17 से 2020-21 के दौरान एसएससी में कुल 2 लाख 14 हजार 601 कर्मचारियों को भर्ती किया गया था। साथ ही RRB ने 2 लाख 4 हजार 945 लोगों को नियुक्ति दी। वहीं यूपीएससी ने भी 25 हजार 267 उम्मीदवारों का चयन किया। आंकड़ों के अनुसार वर्तमान में केंद्र में अभी ग्रुप ए (गजटेड) कैटेगरी में 23584, ग्रुप बी (गजटेड) कैटेगरी में 26282, वहीं ग्रुप सी की नॉन गजटेड कैटेगरी में 8.36 लाख पोस्ट खाली हैं। अकेले रक्षा मंत्रालय में ग्रुप बी (नॉन गजटेड) के 39366 और ग्रुप सी के 2.14 लाख पद खाली हैं। रेलवे में ग्रुप सी के 2.91 लाख और गृह मंत्रालय में ग्रुप सी नॉन गजटेड कैटगरी के तहत 1.21 लाख पद खाली हैं।

बीते दिनों उद्योगपति अनिल अग्रवाल की कंपनी ‘वेदांता’ का मामला सामने आया था। कंपनी को 1.5 लाख करोड़ रुपए निवेश का प्लांट लगाना था। पहले चर्चा थी कि प्लांट महाराष्ट्र में लगाया जाना था, लेकिन विलंब होता गया और सरकार के साथ सहमति नहीं बन पाई। महाराष्ट्र में सत्ता-परिवर्तन हुआ। नई सरकार ने दिलचस्पी दिखाई, लेकिन तब तक ‘वेदांता’ गुजरात में प्लांट लगाने की तय कर चुका था। इस प्लांट से 20 लाख नौकरियों और रोजगार का अनुमान है, लेकिन सरकारें इस पर भी गंभीर नहीं हो पाईं। नतीजतन बेरोजगारी बढ़ती जाएगी और विपक्ष हरेक संदर्भ में उसे लेकर चिल्लाता रहेगा। बेरोजगारी की समस्या का समाधान प्राथमिकता से होना चाहिए। इस मामले में राजनीतिक दलों को राजनीति से परहेज करना चाहिए। ये मामला देश के युवाओं से जुड़ा है और ये देश की अर्थव्यवस्था और सामाजिक संपन्नता, समृद्धि एवं शांति के लिए भी अहम है।

लेखक राज्य मुख्यालय पर मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं।


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