
- दिनेश शिंदे
मुंबई/वशिष्ठ वाणी। नया साल यानी 2020 साल शुरू हुए ज्यादा वक्त नहीं बीता था. तब अचानक इंसानो और पुरे विश्व के सामने एक गहरा संकट आकर खड़ा हुआ. कोरोना (Corona) का संकट. जिसका कोई रूप रंग नहीं लेकिन कई परिवारों की खुशियां कोरोना ने छीनी. एक ऐसा संकट जिसका कब अंत होगा कोई नहीं जानता, कैसे अंत होगा यह भी कोई नहीं जानता. हालांकि इससे बचने के उपाय के तौर कुछ कदम उठाए गए जैसे सोशल डिस्टेंसिंग (social distancing), मास्क लगाना (mask wearing) लेकिन 2022 में कोरोना का खतरा बरकरार है. कोरोना ने जिन परिवारों की खुशियां ग़म में बदली उनके लिए जिंदगी आसान नहीं रही. घर का मुखिया मतलब परिवार में कमानेवाले व्यक्ति को कोरोना ने परिवार से अलग कर दिया. घर के मुखिया के ना होने से तमाम तरह की चुनौतियां परिवार के अन्य सदस्यों के सामने थी. कई लोगों के मन में ऐसे विचार भी आए की जब कुछ अच्छा नहीं हो रहा तो इस जीवन का क्या महत्व? इस जीवन से मुक्त होना अच्छा है परंतु ऐसे मुश्किल हालातों में कुछ लोगों ने हार न मानते हुए जीवन के हर मुश्किलों का सामना करने की ठानी. आज की कहानी ऐसे ही एक महिला (women’s inspirational story) की है. भंडारा में रहनेवाली अनिता रवी क्षीरसागर (Anita Ravi Kshirsagar) की यह कहानी है जो उम्मीद दिखा रही है.
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अनीता के पती 42 वर्षीय रवि क्षीरसागर की 27 अप्रैल, 2021 को कोरोना के दूसरी लहर में मृत्यु हुई. रवि की मृत्यू ने उनकी पत्नी और दो बच्चों को बड़ी क्षती पहुंचाई क्योंकि रवि घर का कर्ता था. रवि की मौत के बाद उसकी पत्नी अनीता अकेली रह गई थी. अनीता पर अब एक नहीं दो जिम्मेदारियां थी. उन्हें माता पिता दोनों की जिम्मेदारियां निभानी थी. अनीता के लिए यह सब आसान नही था. एक लड़का नौवीं कक्षा में, दूसरा सातवीं कक्षा में. जैसे कुछ लोगों के सामने सवाल थे उसी तरह अनीता कई सवालों का सामना करना रही थी. जैसे दोनों बच्चों की पढ़ाई कैसे पूरी करें, पैसे कहां से लाएं, कैसे रहें?. इसलिए वह अक्सर सोचती थी कि हमें जीना नही चाहिए. लेकिन मेरे बाद इन बच्चों का क्या होगा इस सोच से अनीता मे एक नई उम्मीद जगी.

रवि क्षीरसागर भंडारा शहर के गांधी चौक (Gandhi Chowk, Bhandara city). में एक छोटी सी जगह पर कपड़े प्रेस का काम करते थे. उनकी मृत्यु के बाद, अनीता ने ऐसा ही करने का फैसला किया. उसने पहले कभी प्रेस काम नहीं किया था. तो, शुरुआत में उसने यह काम देवर से सीखा. जिस इलाके में अनीता कपड़े प्रेस करना चाहती थी, वहां लगातार कामकाजी लोगों और अन्य लोगों की भीड़ लगी रहती है. शुरुआत में अनीता को यह असहनीय लगा. जहां पहले आठ दिन काम करने के बाद अनीता रवि की फोटो के सामने बैठी रोती रहती थी. फिर भविष्य के बारे में सोचते हुए, इन सब बातों को नज़रअंदाज करते हुए, वह वापस उसी जगह पर आ गई है और वही काम जारी रखा है.
